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Sunday, June 21, 2015

अनुभव बस की पॉलिटिक्स का, NUSRL I

क्या मैं बुद्धिस्ट बनूं ??
कुछ दिन पहले, मतलब बात बस परसो की है .. मैं उस दिन अपने यूनिवर्सिटी बस में सवार होने वाला पहला "ऑफिसर" क्लास था।
तो उस वक़्त उस बस में "दीदियां" और एक स्टाफ बैठे थे। स्टाफ सबसे आगे की सीट पे बैठ था, उस सीट पर जिस सीट पे पिछले कुछ दिनों से मैं बैठ रहा था। और दीदियां भी आगे वाली सीटों पे हीं बैठी थी।
मुझे देख कर वो थोडा सकुचाया या कहे तो कुनमुनाया मगर हिल के भी नहीं हिला। मतलब इतना भी नहीं हिला कि हम उधर बढ़ते या उसको मना कर सकते थे कि... अरे नहीं नहीं  बैठो।
खैर दीदी लोगों को भी लगा कि शायद ये अन्याय है, तो वो भी थोडा बहुत हिली मगर तब तक मैं पीछे चला गया था क्योंकी मुझे किसी के साथ बैठना ज्यादा मुश्किल लगता है, बनिष्पत के पीछे बैठने के...
एक बार पहले भी मैंने आगे बैठना छोड़ा था, क्योंकि लोग आगे बैठने पे, आपके साथ में आकर बैठ जाएंगे, ना कि पीछे वाली खाली सीट पे जाने की जगह। पता नहीं ऐसा क्या है आगे वाली सीटों में।
तो खैर मैं पीछे की सीट पर आकर बैठ गया।
फिर बस आगे बढ़ी। और रेडियम रोड के स्टॉप पर आ के रुकी जहाँ पर आजकल संदीप अलिक और हीरल चढतीं हैं।
पहले बस फिरायालाल तक जाती थी उनके लिए, मगर अभी कुछ दिनों से एक मज़ेदार कारण से स्टाफ बस बंद है, ये तो सिर्फ दीदी लोगों को लाने के लिए चलती है क्योंकी इतने कम वेतन में कौन काम करेगा। या पता नहीं जो भी हो स्टाफ बस बंद है, मगर उसी रूट पे वही बस अभी 'ऑफिशियली' चल रही है दीदी लोगो को लाने के लिए। तो यही वो बस है।
जैसे हीं वहां पर बस रुकी, बस के अंदर हड़कंप मच गया। सबसे आगे बैठा हुआ वो लड़का बिलकुल कूद कर आगे जा के बोनेट पे बैठ गया। दीदियां भी जल्दी जल्दी एक एक दो दो सीट पीछे हो गयीं और ये सब कहे तो बिजली की तेज गति से हो गया।
संदीप, अलिक वगेरह को शायद एहसास भी ना हुआ हो कि अंदर एक छण के लिए कैसा हड़कंप मचा था।
वो शांति से अंदर आये, मुझे फर्स्ट सीट पे ना पाकर मुझे तलाश किया, मैं पीछे पाया गया। हम मुस्कराये और वो अपने सेकंड नंबर सीट पे जा के बैठ गए। हीरल भी अपने फर्स्ट या सेकंड, राईट हैण्ड वाली साइड के, सीट पे बैठ गयी ।बस चल पडी। 
इधर मैं एक सोंच में पड़ गया।
मुझे एक बात याद आयी जो अर्पिता ने मुझे बतायी थी कि कैसे गार्ड फीमेल फैकल्टी को सैलूट नहीं करते थे, जो बात उसे प्रिया विजय मैम ने बताई थी।
तो मैं कन्फ्यूज्ड हूँ । क्या ये कूल है या कि ये अलार्मिंग सिचुएशन है।
मतलब कही ऐसा तो नहीं कि मैं अपना "वजन" खो रहा हूँ। आखिर कोई हिला क्यों नहीं ??
जैसा की मुझे याद है कि मेरा एक नेतरहाट फ्रेंड  अक्सर मुझसे कहता था कि अपने अंदर थोडा वजन लाओ, नहीं वो बोलता था "वेट" लाओ और मैं बहुत भरोसे से कह सकता हूँ कि उसका मतलब शारीरिक नहीं था।
जैसे की अब फर्स्ट इयर को छोड़कर कोई भी  स्टूडेंट मुझे देख कर बस में सीट नहीं छोड़ता, बल्कि अब लोग कहते हैं कि कोई फायदा नहीं "सर" बैठेंगे नहीं।
जैसे मैं गार्ड को मना करता हूँ मुझे सलूट करने से मगर अभी तक वो करता है। मना करता हूँ फोर्थ क्लास स्टाफ को मुझे देख कर कुर्सी से खड़े होने पे। अभी तक होते हैं शायद ...
या स्टूडेंट के खड़े होने पर मेरे क्लास के अंदर आने पे।
यहाँ पे एक और इंटरेस्टिंग बात है, और उम्मीद करता हूँ लिखने से बैच अपने ऊपर पर्सनली न ले ले पर फिर भी यहाँ स्टूडेंट्स ("बच्चे") किसी टीचर या गेस्ट के क्लास में आने पड़ खड़े हो जाते हैं शायद ?? पर तिर्की जी के आने पे नहीं। क्यों ?? एक बार मैंने फोर्थ इयर को इस साल सेक्शन A में टोक दिया इस बार। पता नहीं वो क्या सोचते होंगे??
मेरे आने पे तो लोग अब हिलते भी नहीं हैं मतलब मेरे क्लास के अंदर आने पर।
तो क्या मुझे गर्व होना चाहिए क्योंकि यही तो मैं बोलता था या डरना चाहिए जैसा कुछ लोगों ने कहा कि सवाल डिग्निटी का है। क्या कहना है उनका ....
यहाँ पे आती है बुद्धिस्ट वाली बात!! याद है बुद्ध को क्या ज्ञान मिला था कुँए में पानी भरने वाली महिलाओं से....
की वीणा के तार को इतना भी ना खीचों की वो टूट जाए और इतना भी ना ढीला रखो की वो बजे हीं नहीं।
क्या मैंने तार ढीला छोड़ दिया है ??
बॉस मैं बोलता हूँ भाड़ में गया डिग्निटी
...हमसे ना हो पायेगा ।।। 
P.S. सर, भैया और दीदियां !!!
"दीदियां" बस में बैठने वाली पहली सवारियों में हैं। अक्सर मुझसे पहले बस में PA राजेश सर और अलोक सर वगेरह चढ़ चुके होते थे, उसी कारण हीं शायद "दीदियां" मुझे पीछे की सीटो में हीं दिखती थी। मगर आज वो आगे की सीटों में थी।
दरअसल ये बस "ऑफिशियली" अब सिर्फ उन्ही लोगों को लाने के लिए हीं चल रही है, पहले ये स्टाफ बस थी, अब अगर कोई स्टाफ चढ़ जाए रास्ते में तो ठीक है, जैसे मैं चढ़ सकता हूँ क्योंकि मैं रास्ते में हूँ मगर अब ये स्टाफ बस है नहीं।
वैसे ये दीदियां यूनिवर्सिटी के जैनिटर स्टाफ हैं, जो यहाँ अमानवीय भत्ते पर हर दिन यूनिवर्सिटी के हॉस्टल को साफ़ करने के लिये आती हैं।
मैंने ज्यादातर लोगों को उन्हें दीदियां कहते सुना है। किसी को उन्हें भाभी कहते नहीं सुना। ये और बात है उनके "रैंक" के लोगों को भैया कह के हीं बुलाया जाता है जैसे तिर्की भैया या राजेश को भी शायद जिनको मैं (हंसी में) राजेश स्लेव कहता था।
मगर कोई भी PA राजेश सर को भैया नहीं कहता। मुझे लगता है सभी उनको सर कहते हैं।
वैसे यह बात जानना ज्यादा मजेदार होगा अगर माइक्रो लेवल पे यह जानने की कोशिश करें कि कहाँ पर आकर सर कहना शुरू हो जाता है यहाँ। मतलब आप भैया से सर कब बन जाते हैं ।
तो खैर उस दिन सबसे आगे की सीट पर भी कोई उसी फोर्थ ग्रेड रैंक का, जो पता नहीं अभी कैडर में है कि नहीं, बैठा था। उसका नाम मैं अक्सर भूल जाता हूँ।
मतलब वो उतना पॉपुलर स्टाफ नहीं है जैसे माली राजेश या तिर्की सर।
तिर्की जी को बच्चे सर बोलते हैं ?? या राजेश को?? मुझे याद है मैं राजेश को जिसको मैं मजाक में PA राजेश से स्लेव राजेश कह के डिस्टिंगइश् करता था, स्लेव क्योंकि उसकी ड्यूटी उस कैंपस में फैकल्टी के लोगों के लिए हीं फिक्स थी। जो की फैकल्टी के डिमांड पे लगाई गई थी, उनको भी मैं सर हीं बोलता था।
उसका नंबर publicly साहू सर वाले केबिन में लिखा हुआ था। मैंने भी वहां से फ़ोन लगाकर कई एक बार उनसे चाय मगवाई है और जहाँ तक मुझे याद है,  मैंने उन्हें हमेशा सर ही बोला है,
ये सर भी बड़ी मज़ेदार चीज़ है। मैं मिधा सर या बारा सर हीं बोलता हूँ।
वैसे लोग यहाँ खुद को भी सर बोलते हैं जैसे उदाहरण दूं तो लोग बोलेंगे, जैसे कि अगर मुझे  (हालाँकि नहीं बोलता हूँ) किसी स्टूडेंट को बोलना हो कि वो तिर्की सर को बोले कि मैं उन्हें बुला रहा हूँ तो मैं बोलूंगा
"तिर्की जी को बोलना निमेष "सर" बुला रहे हैं.... "

4 comments:

  1. A nice read... Sir is a word used to distinguish power... what is his control of power. I remember using sir and bhaiya for the same person according to my need to exercise his power.

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  2. I agree with Subarno "bhaiya" on use of these words according to the authority and power associated with the person. But apart from being used to address people in formal or informal manner these words are used to distinguish respect and amicable respect, like some seniors ask us to call them sir as in out of respect alone while others ask us to call them bhaiya because of the closeness we have come across!

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  3. I agree with Subarno "bhaiya" on use of these words according to the authority and power associated with the person. But apart from being used to address people in formal or informal manner these words are used to distinguish respect and amicable respect, like some seniors ask us to call them sir as in out of respect alone while others ask us to call them bhaiya because of the closeness we have come across!

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  4. I agree with Subarno "bhaiya" on use of these words according to the authority and power associated with the person. But apart from being used to address people in formal or informal manner these words are used to distinguish respect and amicable respect, like some seniors ask us to call them sir as in out of respect alone while others ask us to call them bhaiya because of the closeness we have come across!

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